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Friday 13 January 2012

सबसे स्वादिष्ट अचार : भ्रष्टाचार (हास्य-व्यंग)

सबसे स्वादिष्ट अचारः भ्रष्टाचार

(मित्रों, प्रस्तुत हास्य-व्यंग सौम्या टाइम्स नामक समाचार पत्र में वर्ष २००९ में प्रकाशित हो चुका है और इसे लोगों ने बहुत पसंद किया है. थोड़ा-बहुत संशोधन सहित यह लेख आपके लिए पुन: प्रस्तुत है. )

आपको संभवतः पता हो अथवा न हो। ‘ट्रान्सपेरेन्सी इन्टरनेशनल’ नामक एक संस्था ने अपने एक शोध में बताया है कि वर्ष 2005 में पाया गया था कि पूरे भारतवर्ष में लगभग पैंतालीस प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिन्हें नौकरी प्राप्त करने में घूस देने अथवा किसी न किसी के द्वारा प्रभावित करने का अनुभव प्राप्त था। पचास प्रतिशत से अधिक लोग ऐसे थे, जिनका अनुभव कहता था कि समस्त प्रकार के सरकारी प्रतिष्ठानों में बिना घूस अथवा पैरवी के कोई काम नहीं होता था। उसके बाद वर्ष 2010 में इसी संस्था ने बताया कि एक सौ अठत्तर भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का स्थान सत्तासी था। अब आज जब भ्रष्टाचार पर इतनी अधिक बातें होने लगी हैं, देश भर में अन्ना-अन्ना की गूँज उठ रही है और आम जनता इस मसले के बारे में सोचने की इच्छा रखती है तो हमें यह जानने का सुअवसर प्राप्त होना चाहिए कि अब हम कहाँ हैं? कितने भीतर तक ध्ँसे हुए हैं? क्या हमारा उद्धार संभव है? ऐसा क्यों है? इसका कारण क्या है? आदि-इत्यादि सभी कुछ जानने के लिए बुद्धिजीवियों ने बहुत दिमाग लगाया। सभाएँ कीं। विश्लेषण किए और कुछ निष्कर्ष भी दिए।
        लेकिन सुधि पाठको, हम आपको पहले ही बता देते हैं कि हम इन उलझनों में फँसने वाले नहीं हैं। हमें तो बस एक ही बात पर विचार करना है कि सबसे अच्छा अचार कौन-सा है? भ्रष्ट + अचार = भ्रष्टाचार। कृपया संधि के नियमों पर न जाएँ, अन्यथा मुझे बहुत कष्ट पहुँचेगा। तो स्पष्ट है कि आप गुरुजनों से मेरा विनम्र आग्रह है कि इस बात को समझिए कि इन बुद्धिजीवियों के निष्कर्ष कैसे थे और क्या थे, इस पर अन्यथा बहस करने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि यह अचार हम सदियों से खाते आ रहे हैं और आगे भी खाते ही रहेंगे। वैसे भी भ्रष्टाचार का अमृत अनादि काल से भारतवर्ष में उपस्थित रहा है। आप नहीं मानेंगे तो हम आपको इस कथा से परिचित करवायेंगे।
        यह कथा रामायण काल की है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार रावण एक ब्राह्मण का वेश धारण कर नर्क देखने के लिए गया। वहाँ उसने देखा कि सभी पापियों को तरह-तरह के दण्ड दिए जा रहे थे। उन्हें तरह-तरह से यातनाएँ दी जा रही थीं और इस हेतु बहुत प्रकार के उपकरणों आदि के प्रयोग भी किए जा रहे थे। एक स्थल पर एक बहुत बड़ी कढ़ाई रखी थी, जिसमें तेल उबल रहा था, किन्तु किसी भी पापी को उसमें नहीं डाला जा रहा था। रावण को जानने की इच्छा हुई कि ऐसा क्यों था।