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Tuesday 26 April 2016

शस्त्रविहीन योद्धा किस काम का


हम सभी जानते हैं कि एक योद्धा के लिये अस्त्र-शस्त्र का कितना महत्त्व होता है। युद्धभूमि में बिना अस्त्र-शस्त्र के योद्धा का होना न होना समान ही कहा जायेगा। उसकी हार निश्चित है। उसका उपहास भी निश्चित है। ठीक उसी प्रकार मानव-जीवन में भी इसके महत्त्व को बहुत आसानी से समझा जा सकता है। शस्त्र का तात्पर्य उन उपयोगी माध्यमों से है, जिनसे युक्त होकर ही कोई विजय प्राप्त कर सकता है, उस युद्धभूमि में टिक सकता है, जहाँ उसने खेमा गाड़ा हुआ है, जैसे एक कवि के लिये छंदशास्त्र की जानकारी होना, एक विचारक के लिये पठन-पाठन किया जाना, एक वकील के लिये विधि की जानकारी होना, एक वैद्य के लिये न केवल बीमारियों की जानकारी होना बल्कि उसके उपचार के लिये यंत्रादि के साथ दवा आदि का होना। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि जिस भी क्षेत्र में हम अपने हाथ आजमाते हैं वहाँ के शस्त्रों की जानकारी होना परमावश्यक होता है।

हम साहित्य की ही बात करें, तो देखा जाता है कि आजकल लोग साहित्यकार बन जाया करते हैं, किन्तु साहित्य के बारे में उन्हें क, ख भी नहीं आता। जानकारी न होने पर भी बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं और दम्भ भी किया जाता है। तब यह उपहास का कारण बनता है। ठीक उसी प्रकार जैसे बिना विधि-नियमों की जानकारी वाले वकील की किसी न्यायालय में परिस्थिति होती है। आवश्यकता है कि हमें स्वयं को उस योग्य बनाना होगा कि लोग स्वयं कहें कि आप वो हैं, जो आप दिखना अथवा बनना चाहते हैं। स्वयंभू होना अथवा कहलवाना उचित नहीं है। 


जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के लिये उस क्षेत्र के शस्त्रों की आवश्यकता एवं उपयोगिता पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। बिना इन उपयोगी जानकारियों के हम शस्त्रविहीन योद्धा ही माने जायेंगे और उपहास के पात्र बनेंगे। अतः आवश्यकता है स्वयं को उन शस्त्रों से लैश करना। जानकारियाँ इकट्ठा करना। स्वयं को उस योग्य बनाना कि हर बात में तर्क हो, बातें उपयोगी हों, जो लोगों को सटीक लगें। 


यह मंथन का विषय है, किसी पर न आक्षेप है और न ही इस मंथन का ऐसा कोई उद्देश्य है। कई बार देखा गया कि लोग अपनी बात रखने से डरते हैं अथवा परहेज करते हैं अथवा रुचि नहीं लेते हैं। उनसे यही कहना है कि मंथन से लाभ ही होता है हानि कदापि नहीं। हमारे शस्त्रों की बढ़ोतरी होती रहती है। जानकारियाँ बढ़ती रहती हैं और हम युद्धभूमि में जाने में सक्षमता को हासिल करते जाते हैं। आइये आज भी हम इस बात पर मंथन करें कि ‘‘शस्त्रविहीन योद्धा किस काम का’’ - यह विषय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिये उतना ही उचित है, जितना कि युद्ध के लिये। अतः आप सभी के विचार आमंत्रित हैं।


विश्वजीत 'सपन'