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Wednesday 23 November 2016

नोटबंदी पर एक नज़र



8 नवंबर 2016 को हज़ार और पाँच सौ के नोटों को बंद कर दिया गया। देश एकबारगी सकते में आ गया। प्रारंभ में बहुत से लोगों को समझ नहीं आया कि हुआ क्या? धीरे-धीरे लोग समझने लगे कि यह एक प्रयास है, काला धन समाप्त करने, नकली नोटों के व्यापार को ठप्प करने, धन छुपाने वालों को हमेशा के लिये नेस्त-नाबूद करने, आतंकी एवं अतिवादियों के धन को ठिकाने लगाने और हवाला धन को समाप्त करने आदि का।  

देशव्यापी चर्चायें आरंभ हो गयीं। नेता, अफ़सर, मीडिया सभी वाद-विवाद में उलझ गये। नोटबंदी के समर्थन में और विरोध में बातें होने लगीं। आम जनता कतारों में उलझ गयी और प्रतिदिन कुछ न कुछ ऐसा होने लगा कि आम आदमी के लिये समझना कठिन होता जा रहा है। ऐसे में आज पन्द्रह दिनों के बाद क्या स्थिति बनी है, इस पर विचार आवश्यक हो जाता है।


आज से पूर्व भी लगभग अड़तीस साल पहले 1978 में नोटबंदी हुई थी। तब भी आम जनता को परेशानी हुई थी, लेकिन तब मीडिया इतना सक्रिय नहीं था। लोग बहुत सी बातें जान नहीं पाते थे, लेकिन आज मिनटों में ही ख़बर हमारे सामने होती है, अतः परिस्थितियाँ भिन्न हैं।


एक बात जो सर्वप्रथम सामने आयी कि कालाधन कितना प्रतिशत है? अत्यधिक है, किन्तु देश में नहीं, बल्कि विदेशों में। कहते हैं कि विदेशी बैंकों में भारत का इतना काला धन है, जो सभी देशों के काला धन से भी अधिक निकलता है। स्वर्ण पदक भारत का होता यदि ओलम्पिक होता। ख़ैर भारत में कितना है? इस पर सवाल उठ रहें हैं और सहमति नहीं है। नोटबंदी के कारण 14 लाख करोड़ धन बेकार हो गया। इसका यदि 2 प्रतिशत भी काला धन भारत में है, तो 2.80 लाख करोड़ काला धन समाप्त हो जायेगा। यदि यह अधिक है, तो हम अनुमान लगा सकते हैं।


उधर यह भी सुनने में आ रहा है कि इन काला धन वालों ने अनेक तिकड़म लगाकर अपने धन को सुरक्षित कर लिया है। किसी ने अपने सगे-संबंधियों के नाम पर, तो किसी ने अपने मजदूरों के नाम पर तो किसी ने ऐसे ही अनेक लोगों के नाम पर धन बैंक में जमा करवाये। किसी ने रेल टिकट लिया तो किसी ने हवाई जहाज का, जिसे कल रद्द करके उन्हें सफेद किया जा सकेगा। किसी ने संपत्ति खरीद ली तो किसी ने सोना खरीद लिया। फिर कितना प्रतिशत काला धन उजागर होगा, यह भी प्रश्नचिह्न ही है।


सभी जानते हैं हर छोटा-बड़ा व्यापारी नगद में ही व्यापार करता है और देश के कर की चोरी भी करता है। उसके लिये तो समय रुक गया है मानो। ठीक है वह बैंक में पैसे जमा कर अपने पैसे बचा सकता है, किन्तु उन्हें झटका आवश्य लगेगा। हाँ इस प्रकार देश की आमदनी बढ़ेगी और देश समृद्ध होगा। इसी के साथ नगद व्यापार का पत्ता भी साफ हो जायेगा और देश कैशलेस समाज की ओर क़दम बढ़ायेगा। यह एक बहुत ही सुन्दर और लाभकारी क़दम माना जाना चाहिए।


एक प्रश्न जो सभी को चिंतित कर रहा है कि कालाबाज़ारी रोकने के लिये 500 और 1000 के नोट बंद करने पड़े, तो 2000 के नोट लागू करने से इस पर किस प्रकार रोक लगायी जा सकती है? क्या कुछ समय बाद इसे पुनः बंद करने का विचार है? पुनः 500 के भी नये नोट आये, तो 1000 के भी नोट आते तो क्या होता? ये प्रश्न अनुत्तरित हैं। समय ही बता पायेगा कि सरकार की मंशा क्या थी!


कल मैं विशाखापट्टणम् के एक एटीएम में गया, कोई भीड़ नहीं थी। पहली बार 2000 के दर्शन किये। तब मैंने लोगों से पूछा कि हर जगह हल्ला है कि इतनी भीड़ है कि लोग पैसे नहीं निकाल पा रहे, जबकि यहाँ तो मामला ही उल्टा है। तब वे कहने लगे कि पैसे लेने वालों की भीड़ नहीं है, बल्कि पैसे बदलवाने वालों की भीेड़ है, बैंक में। उधर उत्तर प्रदेश में एक व्यक्ति एटीएम के बाहर कुचल कर मर गया। अजीब माहौल है। सच्चाई पर अभी भी परदा पड़ा है। क्या सच में लोग परेशान हैं अथवा परेशानी का बहाना कर रहे हैं। क्या कुछ वृद्धों की मृत्यु बीमारी के कारण नहीं होती है? क्या यह इतनी बड़ी बात है कि उछाला जाये?

कतार में कुछ लोगों की मौत, किसी बड़े उद्यमी का कतार में न खड़ा होना, ग़रीब जनता की दुहाई देना, चंद राजनीतिक पार्टियों द्वारा नकारात्मक कथन देना, सोशल मीडिया में दुष्प्रचार आदि न जाने कितने सवाल हम सभी के समक्ष हैं और कुछ बातें डर उत्पन्न कर रही हैं, जैसे आज एक आतंकवादी के पास से 2000 के नोट का मिलना, एटीएम में पैसे रखने वालों के द्वारा लाखों की चोरी (अभी पता चला है कि जो एजेंसी एटीएम में पैसे रखती है, उनके आदमी एटीएम में पूरा पैसा नहीं रखते और अपने पास जमा करके उससे पैसे बना रहे हैं। अभी आन्ध्र प्रदेश में ऐसे ही व्यक्तियों से दो केस में 15.50 लाख एवं 19.50 लाख बरामद हूआ है।) उधर किसी एक व्यक्ति के पास से 16.50 लाख का 2000 का नया नोट मिलना आदि। ये सभी कुछ संकेत दे रहे हैं।

उधर एक बात समझ नहीं आयी कि मात्र 2000 रुपये से एक आम आदमी का कार्य कैसे चलेगा? एक बड़े शहर में कोई व्यक्ति पच्चीस-तीस हज़ार से कम में महीना नहीं बिता सकता, तब प्रतिदिन कम से कम एक हज़ार बैठता है। दूध वाला, सब्ज़ी वाला, पेपर वाला, कूड़े वाला सभी पैसे की माँग करेंगे। बिजली-पानी का बिल और अनेक प्रकार की बातें हैं। तब इतना कम धन कैसे कार्य कर पायेगा?
 

इसके बाद भी जनता सरकार के साथ दिख रही है, क्योंकि वह तंग है। उसे देश को बदलने की इच्छा है। वह चाहती है कि कड़े से कड़े क़दम उठाये जायें, ताकि कालाबाज़ारी आदि पर रोक लगे। लेकिन इसके बाद भी कुछ प्रश्न सामने खड़े हैं।

क्या निर्णय शीघ्रता में लिया गया? क्या सरकार की तैयारी में कमी रही? क्या यह उचित लाभ लायेगा? क्या देश का भविष्य सुधरेगा? और ऐसे ही अनेक प्रश्न भी समक्ष हैं।

सादर
सपन